छत्तीसगढ़ का पाषाण कालीन इतिहास
एक पुरातात्विक यात्रा: हजारों वर्षों की मानव सभ्यता के पदचिन्ह
प्रस्तावना: प्रागैतिहासिक छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़, जिसे अक्सर भारत का ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, केवल अपनी समृद्ध कृषि विरासत के लिए ही नहीं, बल्कि अपने गहरे और प्राचीन प्रागैतिहासिक अतीत के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र मानव सभ्यता के उन प्रारंभिक अध्यायों का साक्षी रहा है, जिनका कोई लिखित प्रमाण नहीं है। यहाँ की गुफाओं, नदी घाटियों और घने जंगलों ने पाषाण युगीन मानव के लिए एक आदर्श आश्रय प्रदान किया, जिसके साक्ष्य आज हमें पुरातात्विक खोजों के रूप में मिलते हैं। यह इन्फोग्राफिक आपको छत्तीसगढ़ के पाषाण काल की एक विस्तृत यात्रा पर ले जाएगा, जो मानव विकास, तकनीकी नवाचार और कलात्मक अभिव्यक्ति की एक अनूठी कहानी प्रस्तुत करता है।
पाषाण युग की समयरेखा
पुरापाषाण काल
(~10 लाख – 10 हजार ईसा पूर्व)
मानव शिकारी-संग्राहक के रूप में जीवन व्यतीत करता था। बड़े और अनगढ़ पत्थर के औजारों जैसे हस्त-कुठार और कुल्हाड़ी का उपयोग होता था। सिंघनपुर की गुफाओं में मिले प्राचीनतम शैलचित्र इसी काल के हैं।
मध्यपाषाण काल
(~10 हजार – 9 हजार ईसा पूर्व)
जलवायु परिवर्तन के साथ मानव ने छोटे जानवरों का शिकार करना और पशुपालन शुरू किया। ‘माइक्रोलिथ्स’ (लघु पाषाण उपकरण) का विकास हुआ। कबरा पहाड़ से इस काल के महत्वपूर्ण साक्ष्य मिले हैं।
नवपाषाण काल
(~7 हजार – 4 हजार ईसा पूर्व)
“कृषि क्रांति” का युग। मानव ने स्थायी निवास, कृषि, और पॉलिश किए गए औजारों का विकास किया। मिट्टी के बर्तनों का निर्माण शुरू हुआ। चितवा डोंगरी और अर्जुनी प्रमुख स्थल हैं।
महापाषाण काल
(नवपाषाण के बाद)
विशाल शिलाखंडों से शवों के लिए स्मारक बनाने की प्रथा का उदय हुआ। यह लौह युग के प्रारंभ से भी जुड़ा है। बालोद जिले का धनोरा और करकाभाट इस संस्कृति के प्रमुख केंद्र हैं।
प्रमुख पुरातात्विक खोजें
सिंघनपुर, रायगढ़
छत्तीसगढ़ का सबसे प्राचीन शैलाश्रय। यहाँ पुरापाषाण कालीन शैलचित्र मिले हैं, जिनमें सीढ़ी से शिकार करता मनुष्य प्रमुख है।
⛰️कबरा पहाड़, रायगढ़
मध्यपाषाण काल का महत्वपूर्ण स्थल। यहाँ लाल रंग के शैलचित्रों में छिपकली, घड़ियाल और सांभर का चित्रण है।
🦎चितवा डोंगरी, राजनांदगांव
नवपाषाण काल का स्थल, जो चीनी ड्रैगन जैसी आकृति वाले अद्वितीय शैलचित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
🐉पाषाण कालीन स्थल: जिलावार वितरण
रायगढ़ जिला विभिन्न कालों के शैलचित्रों और साक्ष्यों की प्रचुरता के कारण सबसे प्रमुख है।
धनोरा, बालोद: एक महापाषाणिक केंद्र
महापाषाण स्मारक खोजे गए, जो इस क्षेत्र में एक संगठित और व्यापक शव-दफन प्रथा का संकेत देते हैं।
विस्तृत पुरातात्विक स्थल सूची
छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में फैले पाषाण कालीन स्थल इस क्षेत्र के समृद्ध प्रागैतिहासिक इतिहास की पुष्टि करते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख स्थलों का विस्तृत विवरण दिया गया है:
रायगढ़ जिला
सिंघनपुर
काल: पुरापाषाण, उत्तर पाषाण
खोजें: सबसे प्राचीन शैलाश्रय, प्राचीनतम शैलचित्र (मानव आकृतियाँ, आखेट दृश्य, सीढ़ी से आखेट करता मनुष्य)।
शोधकर्ता: एंडरसन, अमरनाथ दत्त
कबरा पहाड़
काल: मध्यपाषाण, उत्तर पाषाण
खोजें: लाल रंग के शैलचित्र (छिपकली, घड़ियाल, सांभर), लंबे फलक, अर्द्ध चंद्राकार लघु पाषाण औजार।
बोतल्दा
काल: पूर्व पाषाण, उत्तर पाषाण
खोजें: प्रागैतिहासिक कालीन लंबी गुफा।
करमागढ़
काल: उत्तर पाषाण
खोजें: विचित्र प्राणी के चित्र (सांप, मछली, मेंढक)।
ओगना
काल: उत्तर पाषाण
खोजें: पुष्पताओं व पक्षी का चित्रण।
टेरम
काल: नवपाषाण
खोजें: नवपाषाण काल के औजार।
छापामारा, भंवरखोल, गीधा, सोनबरसा
काल: पूर्व पाषाण
खोजें: पुरापाषाण कालीन अवशेष।
बसनाझर, धनपुर (बिलासपुर/गौरेला पेंड्रा मरवाही)
काल: उत्तर पाषाण
खोजें: उत्तर पाषाण कालीन अवशेष।
खैरपुर, टीपाखोल, भैंसगढ़ी, बेनीपाठ
खोजें: शैलचित्र।
दुर्ग और बालोद जिला
अर्जुनी (दुर्ग)
काल: नवपाषाण
खोजें: नवपाषाण काल के औजार।
करहीभदर, सोरर, चिरचारी (बालोद)
काल: महापाषाण
खोजें: पाषाण घेरे, ताम्र लौह युग के साक्ष्य।
करकाभाट (बालोद)
काल: महापाषाण
खोजें: पाषाण घेरे के साथ लोहे के औजार और मृदभांड।
धनोरा (बालोद)
काल: महापाषाण
खोजें: लगभग 500 महापाषाण स्मारक।
शोधकर्ता: डॉ. एम. जी. दीक्षित, प्रो. जे. आर. कांबले, डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र
राजनांदगांव जिला
चितवा डोंगरी
काल: नवपाषाण
खोजें: नवपाषाण काल के औजार, चीनी ड्रैगन की आकृति के अद्वितीय शैलचित्र।
शोधकर्ता: भगवान सिंह बघेल, डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र
बोनटीला
काल: नवपाषाण
खोजें: नवपाषाण कालीन अवशेष।
बस्तर जिला
कालीपुर, गढ़धनोरा, खड़ागघाट, गढ़चंदेला, घाटलोहांग, भातेवाड़ा, राजपुर
काल: मध्यपाषाण
खोजें: उपकरण अवशेष।
डिलमिली, गमेवाड़ा
काल: महापाषाण
खोजें: महापाषाणीय स्मारक।
बिलासपुर जिला
अरपा नदी के किनारे
काल: पाषाण काल
खोजें: पत्थरों के औजार, मानव संस्कृति के साक्ष्य (15 हजार साल पहले)।
शोधकर्ता: डॉ. विनय तिवारी
कांकेर जिला
उड़कुरा
काल: पाषाण काल
खोजें: एलियन का चित्रण।
तकनीकी विकास: औजारों की कहानी
पाषाण औजारों का विकास
यह चार्ट दर्शाता है कि कैसे समय के साथ औजार बड़े और अनगढ़ से छोटे, परिष्कृत और विशेषीकृत होते गए।
नवपाषाण कालीन क्रांति
-
🌾
कृषि का आरंभ: मानव खाद्य संग्राहक से खाद्य उत्पादक बना, जिससे स्थायी जीवन संभव हुआ।
-
🏺
मृदभांड निर्माण: भंडारण और खाना पकाने के लिए मिट्टी के बर्तनों का आविष्कार हुआ।
-
🏠
स्थायी निवास: कृषि ने मानव को एक ही स्थान पर बसने के लिए प्रेरित किया, जिससे गांवों का विकास हुआ।
-
🎡
पहिये का आविष्कार: प्रारंभिक उपयोग बर्तन बनाने के लिए चाक के रूप में हुआ, जो एक बड़ी तकनीकी छलांग थी।
कला और संस्कृति: प्रागैतिहासिक अभिव्यक्तियाँ
शैलचित्रों की विषय-वस्तु
शैलचित्र उस समय के जीवन, विश्वास और पर्यावरण को दर्शाते हैं, जिसमें शिकार के दृश्य और पशु-पक्षी प्रमुख थे।
महापाषाणिक अनुष्ठान
महापाषाण काल में शवों को बड़े पत्थरों (डॉलमेन) के नीचे दफनाने की प्रथा थी। इन समाधियों में शव के साथ-साथ औजार, हथियार और मिट्टी के बर्तन भी रखे जाते थे। यह प्रथा मृत्यु के बाद के जीवन में उनके विश्वास को दर्शाती है और एक जटिल सामाजिक और अनुष्ठानिक संरचना का संकेत देती है। बालोद जिले के स्थल दक्षिण भारतीय महापाषाण संस्कृति के साथ समानताएं दिखाते हैं, जो प्राचीन सांस्कृतिक संबंधों की ओर इशारा करता है।
पुरातत्ववेत्ता से पूछें ✨
छत्तीसगढ़ के पाषाण काल के बारे में आपके मन में कोई प्रश्न है? नीचे अपना प्रश्न टाइप करें और हमारे एआई-संचालित पुरातत्ववेत्ता से उत्तर प्राप्त करें!