छत्तीसगढ़ की लोक नाट्य कलाएँ

छत्तीसगढ़ की लोक नाट्य कलाएँ

🎭 छत्तीसगढ़ की लोक नाट्य कलाएँ 🎭

छत्तीसगढ़ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविध लोक नाट्य कलाओं के लिए जाना जाता है। ये कलाएँ न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि सामाजिक संदेशों और ऐतिहासिक कहानियों को भी दर्शाती हैं।

1. नाचा (Nachā) 🕺

  • उत्पत्ति और उद्देश्य: नाचा एक प्राचीन लोकनाट्य रूप है जो मुख्यतः मनोरंजन के उद्देश्य से विकसित हुआ।
  • जनक: “नाचा के जनक” के रूप में दौड़ दुलार सिंह मनराज जी को जाना जाता है। वे राजनांदगांव जिले के रवेली ग्राम से थे और उन्होंने सबसे पहले रवेली नाच पार्टी का आविष्कार किया था।
  • कलाकार: नाचा में केवल पुरुष ही प्रदर्शन करते हैं, यहाँ तक कि महिलाओं की भूमिका भी पुरुषों द्वारा ही निभाई जाती थी।
  • प्रदर्शन: यह पूरी रात भर, आमतौर पर रात 9-10 बजे से सुबह तक चलता था। प्रदर्शन “रंग मंच” पर होता था जहाँ दर्शक रात भर रुककर इसका आनंद लेते थे।
  • वर्तमान स्थिति: यह कला अब विलुप्त होने के कगार पर है। महासमुंद और दुर्ग क्षेत्र में कुछ ही पार्टियाँ अभी भी इसका प्रदर्शन करती हैं।
  • मुख्य तत्व: नृत्य, चुटकुले, और विशेष रूप से “परी” और “जोकर” की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, जो दर्शकों को खूब हंसाते थे।

2. गम्मत (Gammat) 🎭

  • नाचा से अंतर: गम्मत नाच से काफी मिलता-जुलता है, लेकिन इसका एक बुनियादी अंतर है।
  • विषय-वस्तु: गम्मत का मुख्य उद्देश्य सामाजिक बुराइयों और कुरीतियों पर कटाक्ष करना है। यह खुले में शौच, महिलाओं पर अत्याचार, जाति प्रथा, धर्म आदि जैसे मुद्दों को अभिनय के माध्यम से दर्शाता है।
  • प्रदर्शन: इसमें भी हास्य और मनोरंजन होता है, लेकिन इसका प्राथमिक फोकस सामाजिक सुधार पर रहता है। इसमें माइक और ढोलक, तबला, हारमोनियम जैसे संगीत वाद्य यंत्रों का उपयोग होता है।
  • कलाकार: संतराम निषाद, मोहनलाल साहू, सोहनलाल निषाद जैसे कलाकार गम्मत और नाचा दोनों से जुड़े हुए हैं।

3. दही कांदो (Dahi Kando) 🥛

  • संबंध: यह कृष्ण जन्माष्टमी से संबंधित “दही फोड़” या मटकी फोड़ उत्सव से जुड़ा है।
  • क्षेत्र: यह विशेष रूप से रायगढ़ में मनाया जाता है।
  • विषय-वस्तु: इसमें भगवान कृष्ण की माखन चोरी और गोपियों को परेशान करने की कहानियों का मंचन होता है।
  • कलाकार: इसमें पुरुष और महिला दोनों कलाकार शामिल होते हैं।

4. माओ पाटा (Mao Pata) 🏹

  • क्षेत्र और जनजाति: यह बस्तर क्षेत्र का लोकनाट्य है, जो विशेष रूप से मुरिया जनजाति (या मडिया) द्वारा किया जाता है। इसे “बस्तर का दूसरा नट पार्ट” भी कहा जाता है।
  • विषय-वस्तु: यह शिकार कथा पर आधारित है। यह गौर (बाइसन) या हिरण के शिकार की तैयारी से लेकर शिकार के दौरान आने वाली कठिनाइयों, उनसे बचने और शिकार को सुरक्षित वापस लाने तक की पूरी प्रक्रिया का नाटकीय मंचन है।
  • प्रदर्शन: यह एक अभिनय जैसा प्रदर्शन है जो शिकारियों की घर वापसी पर खुशी व्यक्त करने और देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किया जाता था।

5. भद्रक नाट (Bhadrak Naat) 🪕

  • जनजाति और क्षेत्र: यह भद्रा जनजाति द्वारा किया जाता है, जो मुख्य रूप से बस्तर क्षेत्र में पाई जाती है।
  • उत्पत्ति और प्रभाव: इसका ओडिशा से गहरा संबंध है। माना जाता है कि “पुरुषोत्तम देव जब गए थे जगन्नाथ पुरी” तभी से यह नाटक शुरू हुआ। इस पर उड़िया प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
  • विषय-वस्तु: इसमें रामायण, महाभारत जैसी कथाओं का मंचन होता है, जैसे रावण वध, कंस वध, कीचक वध आदि।
  • वेशभूषा और मुखौटे: 20वीं शताब्दी के आरंभिक काल तक, भद्रक नाट के मुखौटे और वेशभूषा जगन्नाथ पुरी से ही मंगाए जाते थे। नाटकीय पोथियाँ भी उड़िया भाषा में उपलब्ध थीं।
  • भाषा: भद्रा जनजाति की अपनी बोली रही है, जो छत्तीसगढ़ी, हल्बी और उड़िया भाषा का मिश्रण है।
  • नाट्यशास्त्र का प्रभाव: भद्रक नाट में भारत मुनि के नाट्यशास्त्र की अनेक बातें विद्यमान हैं, जैसे नर्तकों का प्रवेश, मंचन का परिचय, विदूषक की उपस्थिति, और गणेश व सरस्वती की वंदना से प्रदर्शन का आरंभ।

6. रहस्य (Rahasy) ✨

  • संबंध: यह उत्तर प्रदेश की “रासलीला” का छत्तीसगढ़ी रूप है, जो भगवान कृष्ण से संबंधित है।
  • क्षेत्र और समुदाय: यह विशेष रूप से बिलासपुर क्षेत्र में राउत जाति के लोगों द्वारा अधिक किया जाता है क्योंकि वे भगवान कृष्ण के अनुयायी हैं।

7. खंब सोंग (Kham Sam) 🌳

  • जनजाति और क्षेत्र: यह कोको जनजाति द्वारा सरगुजा क्षेत्र में किया जाता है।
  • प्रदर्शन: इसमें खंभा गाड़कर उसके ऊपर नृत्य किया जाता है। यह गोंड जनजाति में भी प्रचलित है और इसमें विभिन्न आदिवासी अनुष्ठानों और खेलों का प्रदर्शन होता है।

8. पंडवानी (Pandavani) 🎤

  • विषय-वस्तु: इसमें महाभारत की कथाओं का वर्णन किया जाता है, विशेष रूप से भीम के कथा नायक के रूप में। यह सबल सिंह चौहान द्वारा रचित छत्तीसगढ़ी महाभारत पर आधारित है।
  • प्रमुख वाद्य यंत्र: तंबूरा इसका प्रमुख वाद्य यंत्र है, जिसके साथ खड़ताल का भी प्रयोग होता है।
  • शैलियाँ:
    • कापालिक शैली: इसमें कलाकार खड़े होकर या आधा घुटने पर बैठकर अभिनय करके प्रस्तुति देते हैं, जिसमें कुछ संपादन और रोचकता जोड़ी जाती है।
      प्रमुख कलाकार: तीजन बाई, रितु वर्मा।
    • वेदमाती शैली: इसमें वेदों के अनुसार कथा को चुपचाप बैठकर प्रस्तुत किया जाता है, इसमें कोई अभिनय शामिल नहीं होता।
      प्रमुख कलाकार: झाड़ू राम देवांगन।
  • प्रमुख कलाकार:
    • तीजन बाई: विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त और छत्तीसगढ़ की एकमात्र कलाकार जिन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है। वह कापालिक शैली की पहली महिला कलाकार हैं।
    • झाड़ू राम देवांगन: “पंडवानी के पितामह” माने जाते हैं, जो वेदमाती शैली के कलाकार थे।
    • रितु वर्मा: कापालिक शैली की कलाकार, जो एक पैर जमीन पर और एक पैर से खड़ी होकर प्रदर्शन करती हैं।
    • दुर्गा साहू और शांति बाई भी अन्य प्रमुख कलाकार हैं।
  • कलाकार: इसमें महिला और पुरुष दोनों कलाकार शामिल होते हैं।

9. भरथरी (Bharthari) 👑

  • विषय-वस्तु: इसमें राजा भरथरी और रानी पिंगला की कहानी बताई जाती है।
  • प्रेरणा: यह राजस्थानी लोक कला से प्रेरित है।
  • प्रमुख कलाकार:
    • सूरज बाई खांडे: भरथरी की महत्वपूर्ण और प्रमुख गायिका थीं, जिनका हाल ही में निधन हुआ।
    • सरस्वती निशा जी और सीमा कौशिक (जो छत्तीसगढ़ी गीतों के लिए भी जानी जाती हैं) अन्य कलाकार हैं।
  • प्रदर्शन: इसमें भी कहानियों को अभिनय और गायन के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। कलाकार पारंपरिक आभूषण पहनते हैं।

Rakesh Kumar Verma

Rakesh Kumar Verma

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